Wednesday, January 21, 2009

(25)
कभी-कभी दुर्भाग्य से, वायुयान हों ढेर।
फिर भी उड़ते शान से, सीना ताने शेर॥
(26)
उग्रवाद के हाथ में, यान होय मजबूर।
बड़ों-बड़ों की शान को, चपट चटाता धूर॥
(27)
अणुबम छाती पर गिरा, ध्वस्त हुआ जापान।
मरना-मिटना यान का, है कितना आसान॥
(28)
जरा भूल चालक करे, जाती सबकी जान।
वापिस फिर आती नहीं, मिटी यान की शान॥
(29)
वायुयान ने खोज का, दिया हमेशा साथ।
सारी दुनिया एक हो, मिला रही है हाथ॥
(30)
चाहे ढोना माल हो, या पहुंचाना डाक।
यानों का डंका बजे, सभी ओर है धाक॥
(31)
जो भी सौंपो यान को, देता है अन्जाम ।
भला बुरा सोचे नहीं, रखे काम से काम ॥
(32)
तन-मन हर्षित हो गया, जब पहुंचे उस देश।
जहां कभी पहुंचे नहीं, लंका -अवध नरेश ॥

ख्डिट्रायट से ब्लूमफील्ड प्लेस ड्राइव : कारयात्रा 09.07. 2003,

2 comments:

इस्लामिक वेबदुनिया said...

प्रोफ़ेसर साहब
आपकी कविता और आपके बारे में जानना अच्छा लगा

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।