(17)
शीशों से जब झांकिये, दोनों ऑंख पसार।
श्वेत चादरों का बिछा, विस्तृत पारावार॥
(18)
श्वेत रुई के ढेर से, बादल लगें पहाड़।
भागे-भागे फिर रहे, खाकर हवा लताड़॥
(19)
श्वेत सघन घन गगन में, करते फिरें किलोल।
हंसों के दल उड़ रहे, मानो डैने खोल॥
(20)
सुबह सूर्य की रश्मियाँ, ताने धवल वितान।
दाँत तले उँगली दवा, देखे सकल जहान॥
(21)
पल-पल बादल धर रहे, शैल-शिखर का रूप।
क्षितिज बेचारा रो रहा, थकी-थकी-सी धूप॥
(22)
बहुरुपिया बादल लगे, जैसे 'नटवरलाल'।
वायुयान से दीखता, चलता छलिया चाल॥
(23)
गज-शावक क्रीड़ा करें, नील गगन के बीच।
घन-दल-बल भागा करें, भय वश ऑंखें मींच॥
(24)
तारे दौडें रात में, वायुयान के साथ।
मानो ऐसा तब लगे, थामे उसका हाथ॥
ख्एम्सटर्डम से डिटरायट - वायुयान यात्रा : 08.07.03,
Wednesday, August 13, 2008
(9)
वायुयान की सफर में, वो सुख आया याद।
चढ़ विमान में राम को, मिला 'विजय' के बाद॥
(10)
लम्बी अवधि उड़ान ने, दी दोहा-सौगात।
सबके अधरों पर बसी, बस उनकी ही बात॥
(11)
निर्धारित पथ पर उड़ा रहा यान पाबंद।
वैसे ही खिलता रहा, दोहोें का आनन्द॥
(12)
कार ट्रेन का बस नहीं, करे हवा से बात।
वायुयान उड़ शान से, देता सबको मात॥
(13)
वायुयान की गोद में, करे सिनेमा काम।
जिसे देखना देखता, मांगे ना कुछ दाम॥
(14)
खाना पीना दे मजा, कुशल मधुर व्यवहार।
वायुयान में ऊबका, सहज सरल उपचार॥
(15)
नींद बांटती यान में, सुख सपनों की धूप।
सबके मन में बस गया, सुखद सलोना रूप॥
(16)
आदि अंत सचमुच लगे, भंवर बीच में नाव।
मध्य सफर दे यान में 'चेयरकार' का भाव॥
वायुयान की सफर में, वो सुख आया याद।
चढ़ विमान में राम को, मिला 'विजय' के बाद॥
(10)
लम्बी अवधि उड़ान ने, दी दोहा-सौगात।
सबके अधरों पर बसी, बस उनकी ही बात॥
(11)
निर्धारित पथ पर उड़ा रहा यान पाबंद।
वैसे ही खिलता रहा, दोहोें का आनन्द॥
(12)
कार ट्रेन का बस नहीं, करे हवा से बात।
वायुयान उड़ शान से, देता सबको मात॥
(13)
वायुयान की गोद में, करे सिनेमा काम।
जिसे देखना देखता, मांगे ना कुछ दाम॥
(14)
खाना पीना दे मजा, कुशल मधुर व्यवहार।
वायुयान में ऊबका, सहज सरल उपचार॥
(15)
नींद बांटती यान में, सुख सपनों की धूप।
सबके मन में बस गया, सुखद सलोना रूप॥
(16)
आदि अंत सचमुच लगे, भंवर बीच में नाव।
मध्य सफर दे यान में 'चेयरकार' का भाव॥
Monday, August 11, 2008
नील गगन में1
(१)
पकड़े हम बैठे रहे, इन्तजार की डोर।
अमरीका वीसा मिला, नाच उठा मन मोर॥
(2)
ऑंखों में नचने लगा, 'सात समुन्दर पार'।
शर्तें जब पूरी हुईं, खुला यान का द्वार॥
(३)
मिली सफलता साध को, रखा यान में पैर।
बाग-बाग मन हो गया, वायुयान की सैर॥
(4)
प्रथम यान की सैर में, हुई नींद काफूर।
वीणा-वादिन माँ कहे, 'रचो छंद भरपूर'॥
(5)
रहिमन कबिरा कान में, लगे सुनाने छंद।
दोहों के आनन्द में, डूब गया आनन्द॥
(6)
अपनी गति से जब उड़ा, नील गगन में यान।
हँस-हँस दोहे ने कहा, 'मैं कविता की शान'॥
(7)
बल पर चालक के नचे, वायुयान की चाल।
दोहा तिलक लगा रहा, मेरा ऊँचा भाल॥
'राइटबंधुओं' ने रचा, अजर-अमर इतिहास।
दूरी मुट्ठी में बंधी, सब जग को प्रतिभास॥
ख्मुम्बई से एम्सटर्डम - वायुयान यात्रा : 08.07.03,-
1. 17 दिसम्बर, 1903 को प्रथम उड़ान
(१)
पकड़े हम बैठे रहे, इन्तजार की डोर।
अमरीका वीसा मिला, नाच उठा मन मोर॥
(2)
ऑंखों में नचने लगा, 'सात समुन्दर पार'।
शर्तें जब पूरी हुईं, खुला यान का द्वार॥
(३)
मिली सफलता साध को, रखा यान में पैर।
बाग-बाग मन हो गया, वायुयान की सैर॥
(4)
प्रथम यान की सैर में, हुई नींद काफूर।
वीणा-वादिन माँ कहे, 'रचो छंद भरपूर'॥
(5)
रहिमन कबिरा कान में, लगे सुनाने छंद।
दोहों के आनन्द में, डूब गया आनन्द॥
(6)
अपनी गति से जब उड़ा, नील गगन में यान।
हँस-हँस दोहे ने कहा, 'मैं कविता की शान'॥
(7)
बल पर चालक के नचे, वायुयान की चाल।
दोहा तिलक लगा रहा, मेरा ऊँचा भाल॥
'राइटबंधुओं' ने रचा, अजर-अमर इतिहास।
दूरी मुट्ठी में बंधी, सब जग को प्रतिभास॥
ख्मुम्बई से एम्सटर्डम - वायुयान यात्रा : 08.07.03,-
1. 17 दिसम्बर, 1903 को प्रथम उड़ान
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