Monday, August 11, 2008

नील गगन में1
(१)
पकड़े हम बैठे रहे, इन्तजार की डोर।
अमरीका वीसा मिला, नाच उठा मन मोर॥
(2)
ऑंखों में नचने लगा, 'सात समुन्दर पार'।
शर्तें जब पूरी हुईं, खुला यान का द्वार॥
(३)
मिली सफलता साध को, रखा यान में पैर।
बाग-बाग मन हो गया, वायुयान की सैर॥
(4)
प्रथम यान की सैर में, हुई नींद काफूर।
वीणा-वादिन माँ कहे, 'रचो छंद भरपूर'॥
(5)
रहिमन कबिरा कान में, लगे सुनाने छंद।
दोहों के आनन्द में, डूब गया आनन्द॥
(6)
अपनी गति से जब उड़ा, नील गगन में यान।
हँस-हँस दोहे ने कहा, 'मैं कविता की शान'॥
(7)
बल पर चालक के नचे, वायुयान की चाल।
दोहा तिलक लगा रहा, मेरा ऊँचा भाल॥

'राइटबंधुओं' ने रचा, अजर-अमर इतिहास।
दूरी मुट्ठी में बंधी, सब जग को प्रतिभास॥
ख्मुम्बई से एम्सटर्डम - वायुयान यात्रा : 08.07.03,-
1. 17 दिसम्बर, 1903 को प्रथम उड़ान

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